आयुर्वेद के अनुसार शरीर के कितने प्रकार होते हैं?

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के तीन प्रमुख प्रकार होते हैं:

  1. वात प्रकृति – इस प्रकार के शरीर वाले लोग सामान्यतः सुकुमार और तंदुरुस्त होते हैं। वे स्वतंत्रता, चलन-फिरन और सोचने की गति में तेज होते हैं।यह प्रकृति के लोगों की स्वभावतः प्रवृत्ति होती है। ये लोग सुस्त नहीं होते हैं और अक्सर चिंतित या तनावग्रस्त रहते हैं। उनमें शीतोष्ण वातावरण विशेष रुप से प्रभाव डालता है।
  2. पित्त प्रकृति – इस प्रकार के शरीर वाले लोग अधिक तपश्चर्य और शारीरिक गतिविधियों में रुचि रखते हैं। वे जल्दी गुस्सा होते हैं और इन्हें शांत करने के लिए थोड़ा समय लगता है।यह प्रकृति के लोगों की स्वभावतः प्रवृत्ति होती है। ये लोग सुस्त नहीं होते हैं और अक्सर चिंतित या तनावग्रस्त रहते हैं। उनमें शीतोष्ण वातावरण विशेष रुप से प्रभाव डालता है।
  3. कफ प्रकृति – इस प्रकार के शरीर वाले लोग धीरे-धीरे और स्थिर होते हैं। उन्हें सोशलाइजिंग करने में मजा आता है और वे शांत स्वभाव के होते हैं।यह प्रकृति के लोगों की स्वभावतः स्थिरता होती है। ये लोग अक्सर ठंडे, शांत और स्थिर होते हैं। उनमें शीत वातावरण विशेष रुप से प्रभाव डालता है।

इन तीनों प्रकार के शरीरों की विशेषताओं के अनुसार आयुर्वेद में उपचार और आहार की सलाह दी जाती है।आयुर्वेद के अनुसार, इन तीनों प्रकार के विवेक के आधार पर व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक समस्याओं के लिए विभिन्न चिकित्सा उपाय होते हैं।

कैसे पहचाने कि आपके शरीर का प्रकार क्या है ?

1.वात (Vata):

आप निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर जान सकते हैं कि आपका शरीर वात (Vata) प्रकृति का है:

  • त्वचा: वात प्रकृति वाले व्यक्तियों की त्वचा खराब होती है, जैसे झुर्रियां, खुश्कता और तैथली में असुविधाएं होती हैं।
  • वजन: वात प्रकृति वाले व्यक्तियों का वजन कम होता है।
  • शिशिरता: वात प्रकृति वाले व्यक्तियों के हाथ और पैर शिशिर होते हैं।
  • जोड़ों में दर्द: वात प्रकृति वाले व्यक्तियों के जोड़ों में दर्द होता है और वे ठंडे वातावरण में अधिक बढ़ते हैं।
  • आवाज: वात प्रकृति वाले व्यक्तियों की आवाज पतली होती है।
  • स्वभाव: वात प्रकृति वाले व्यक्ति उत्साही, चंचल और विचरणशील होते हैं। वे निरंतर सोचते रहते हैं और अपने विचारों में विश्वास करते हैं।

यदि आपको इन लक्षणों में से अधिकतम लक्षण मिलते हैं, तो आपकी प्रकृति वात (Vata) हो सकती है।

वात (Vata) दोष को संतुलित कैसे करें?

वात (Vata) दोष को संतुलित करने के लिए आप निम्नलिखित उपायों का उपयोग कर सकते हैं:

  1. दैनिक जीवनशैली में स्थिरता लाना: दैनिक जीवनशैली में स्थिरता लाने के लिए नियमित आहार और निद्रा का पालन करें। एक नियमित दैनिक रुटीन का अनुसरण करना वात दोष को संतुलित करने में मदद कर सकता है।
  2. वात शामक आहार: वात दोष को संतुलित करने के लिए आपको उष्ण और तले हुए भोजनों का सेवन करना चाहिए। धनिया, जीरा, इलायची, अदरक, हल्दी, गुड़ और घी वात दोष को संतुलन प्रदान करने में मदद करता हैं।
  3. अभ्यंग: वात दोष को संतुलित करने के लिए अभ्यंग का उपयोग करें। सेसेम तेल वात दोष को संतुलित करने में मदद कर सकता है। अभ्यंग से पूरे शरीर की मालिश करने से शरीर में उष्णता आती है जो वात दोष को संतुलित करने में मदद करती है।
  4. योग और ध्यान: योग और ध्यान करने से वात दोष को संतुलित करने में मदद मिल सकती है।

2.पित्त (Pitta)

आप निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर जान सकते हैं कि आपका शरीर पित्त (Pitta) प्रकृति का है:

  • त्वचा: पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों की त्वचा नरम होती है और उसमें ज्यादा तेल नहीं होता है। यह चमकीली होती है और त्वचा के रंग में पीलापन होता है।
  • वजन: पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों का वजन मध्यम होता है।
  • शिशिरता: पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों के हाथ और पैर शिशिर नहीं होते हैं।
  • जोड़ों में दर्द: पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों के जोड़ों में दर्द नहीं होता है और वे ठंडे वातावरण में अधिक बढ़ते हैं।
  • आवाज: पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों की आवाज मध्यम रंग की होती है।
  • स्वभाव: पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति उत्साही, अधिक उत्तेजित और दृढ़-संकल्पी होते हैं। वे अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उत्साहपूर्वक काम करते हैं और अपने विचारों और मतों में निरंतर विश्वास रखते हैं।

     पित्त (Pitta)  दोष को संतुलित कैसे करें?

पित्त दोष को संतुलित करने के लिए आप निम्नलिखित उपायों का उपयोग कर सकते हैं:

  • आहार: पित्त दोष को संतुलित करने के लिए आपको अपने आहार में ठंडे तथा मीठे तत्वों का अधिक सेवन करना चाहिए। इसके लिए आप स्वदेशी आहार जैसे फल, सब्जियां, दालें, अनाज आदि खाने का प्रयास करें।
  • विश्राम और निद्रा: नियमित विश्राम और निद्रा पित्त दोष को संतुलित करने में मदद करती है। आपको दिन में कम से कम 7-8 घंटे की नींद लेना चाहिए और अपने शरीर को आराम देना चाहिए।
  • व्यायाम: योग और प्राणायाम जैसे व्यायाम पित्त दोष को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं। इससे शरीर में धीमी गति से शोषण होता है जो पित्त दोष को कम करता है।
  • जीवनशैली: अपनी जीवनशैली में नियमितता लाने से भी पित्त दोष को संतुलित किया जा सकता है। आपको अपनी दिनचर्या में समय निकालना चाहिए जैसे नियमित खाने-पीने का समय, विश्राम का समय, और व्यायाम का समय।

3.कफ (Kapha)

आप निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर जान सकते हैं कि आपका शरीर का प्रकार कफ (Kapha) प्रकृति का है:

  • त्वचा: कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों की त्वचा नरम होती है और धीमी होती है। यह त्वचा उपनहीं होती है और शांत रंग की होती है।
  • वजन: कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों का वजन अधिक होता है।
  • अत्यधिक ठंड।: कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों के हाथ और पैर अत्यधिक ठंडे होते हैं।
  • जोड़ों में दर्द: कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों के जोड़ों में दर्द होता है और वे ठंडे वातावरण में अधिक बढ़ते हैं।
  • आवाज: कफ प्रकृति वाले व्यक्तियों की आवाज गंभीर और मधुर होती है।
  • स्वभाव: कफ प्रकृति वाले व्यक्ति स्थिर, शांत और धीमे होते हैं। वे अपने लक्ष्य की ओर धीमी गति से बढ़ते हैं और धैर्य से काम करते हैं। वे अपने विचारों और मतों में स्थिर रहते हैं और अपने निर्णयों पर भरोसा करते हैं।

कफ (Kapha) दोष को संतुलित कैसे करें?

कफ दोष एक आयुर्वेदिक अवधि है, जो वात और पित्त के साथ मिलकर शरीर के स्वस्थ रखने के लिए जरूरी होती है। हालांकि, जब कफ अधिक मात्रा में उत्पन्न होता है, तो यह शरीर में संतुलित नहीं रहता और बीमारियों के लिए आधार बनता है।

अधिक कफ दोष को संतुलित करने के लिए आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:

  1. आहार: कफ दोष को संतुलित करने के लिए आप उष्ण, तीखा और खुशबूदार भोजन का सेवन करने की सलाह दी जाती है। आप खाद्य सामग्री में जीरा, हल्दी, धनिया, लौंग, अदरक आदि जैसे उत्तम पदार्थ शामिल कर सकते हैं। फल और सब्जियों में खट्टी, खट्टी मीठी, तीखी या लोबियां जैसी खाद्य पदार्थ सेवन करने चाहिए।
  2. व्यायाम: योग और प्राणायाम करना आपको कफ दोष को संतुलित करने में मदद कर सकता है। नियमित योग आपके शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है और श्वसन तंत्र को संतुलित रखता है।
  3. प्राणायाम: प्राणायाम करने से श्वसन तंत्र को संतुलित किया जा सकता है और कफ दोष को कम किया जा सकता है। कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, उज्जायी आदि प्राणायाम उपयोगी होते हैं।
  4. अभ्यंग (शरीर मालिश): सर्वांग अभ्यंग करने से शरीर का मांसपेशियों और नसों में संचार होता है जो कफ दोष को संतुलित करता है।इस पद्धति के अनुसार, एक व्यक्ति को सरसों या नारियल के तेल से शरीर के समस्त अंगों को मालिश करना चाहिए। इसके अलावा, आपको शरीर के रोगों और दोषों के आधार पर विभिन्न तेलों का चयन करना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के शरीर में कफ दोष है तो उन्हें सरसों तेल का उपयोग करना चाहिए।अभ्यंग के लाभों में शामिल हैं:
    1. शारीरिक तनाव को कम करना
    2. चिंता, थकान और असामान्य उत्तेजना को कम करना
    3. नींद को बेहतर बनाना
    4. रक्त संचार को सुधारना
    5. मांसपेशियों को शक्ति देना
    6. शरीर के दोषों को संतुलित करना।

इन्हें भी पढ़ें:बालों के लिए कोकोनट मिल्क के फायदे जानकर आप हैरान हो जाएंगे!

Share Article:

Web Stories
Edit Template

2023 Created with diyglow.in 

facial oil for glowing skin Amla & Tulsi: A DIY Hair Mask for Dandruff-Free Bliss The Power of Citrus: Health Benefits of Oranges Benefits of Gram Flour in Skincare Tea Tree Oil and Multani Mitti Pack – Your Dynamic Duo for Oily Skin “Unlocking the Secrets of Yogurt for Beautiful Skin” Amla and Tulsi Power: Unleash the Strength of Nature for Healthy Hair “Harness the Nutritional Power: Flaxseed Oil Essentials”